मंत्री गोपाल भार्गव भी बेवस , मजबूर और लाचार पुलिस हाउसिंग में कारिंदों की कारस्तानी आरपार अपर मुख्य सचिव के यहां 3 वर्ष से धूल खा रही है मंत्री की नोटशीट यदि समय पर ले लिया होता संज्ञान तो नहीं होते हेमा मीणा जैसे कांड
भोपाल । पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन में नित नये चौकाने वाले घपले - घोटालों के खुलासे में रोज नये - नये तथ्य सामने आ रहे हैं । जहां प्रभावी मंत्री जगदीश देवड़ा की वित्तीय अनियमितताओं विषयक तथा पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन एवं रामपाल सिंह द्वारा वर्तमान के घपले- घोटालों के खिलाफ जांच करने के पत्र ठंडे बस्ते में पड़े हैं , जिन पर एक- एक महीने में कार्यवाही होने के निर्देशों के बाद भी 4 महीने तक भी कोई कार्यवाही नहीं हुई लेकिन इसमें इसलिये आश्चर्य नहीं है कि आज से लगभग 3 वर्ष पूर्व लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव द्वारा निगम में जनार्दन सिंह एवं अन्य अधिकारियों , जिसमें प्रमुखतः दैनिक वेतन भोगी से सेवा प्रारंभ कर विभागीय जांच के चलते भी और वर्तमान में निगम में अरबों के निष्फल व्यय के जिम्मेदार प्रभारी मुख्य परियोजना यंत्री जेपी पस्तोर , अधीक्षण यंत्री पांडेय , जिनके द्वारा जबलपुर की फायर रेंज के निर्माण और नस्ती दोनों को नेस्तनाबूद कर दिया । साथ ही इस तिकड़ी के चहेते कनकी बालाघाट परियोजना में 60 करोड़ के निष्फल व्यय एवं ग्वालियर कान्स्टेबल आवास परियोजना , जिसमें वित्तीय सलाहकार की स्पष्ट आपत्ति के बाद भी 14 करोड़ का अनियमित भुगतान करने वाले अधीनस्थ परियोजना यंत्री एवं ऐसे ही अन्य घपले घोटालेबाज परियोजना यंत्री के खिलाफ स्पष्ट कहा गया था कि इनके द्वारा भारी भ्रष्टाचार एवं अनियमितताएं की गई हैं तथा वर्णित तथ्य गंभीर स्वरूप के हैं । जिनकी अन्य विभाग के मुख्य अभियंता स्तर से जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जानी चाहिये ।
इसी प्रकार पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन , रामपाल सिंह के प्रेषित पत्रों में इनके घोटालों को विस्तृत रूप से उल्लेखित किया गया है तथा प्राप्त सप्रमाण शिकायतों के आधार पर एवं प्रकाशित खबरों पर कोई संज्ञान न लेते हुए सरकार और सीएम शिवराज की जीरो टालरेंस नीति को धता बताने में निगम सबसे अव्वल नजर आ रहा है । हाल की शिकायतें और खबरे तो छोड़ें , यदि 3 वर्ष पूर्व कद्दावर मंत्री की प्रेषित नोटशीट पर कार्यवाही कर दी गई होती तो निगम कम से कम 60 करोड़ के निष्फल व्यय और 14 करोड़ के अनियमित व्यय से बच जाता । अब इसमें ध्यान देने लायक बात यह है कि 26 अगस्त 2020 की मंत्री की नोटशीट का भी वही हश्र हुआ जो निगम के तत्कालीन अध्यक्ष द्वारा प्रभारी मुख्य परियोजना यंत्री एवं तत्समय डीआईजी कार्यालय के घटिया निर्माण के जिम्मेदार पस्तोर की नोटशीट का हुआ । आखिर क्यों निगम में आई हुई है घपले घोटालों की बाढ़ , किसकी मिल रही है इनको आड़ । इन सब का खुलासा मंत्रियों की लंबित नोटशीट , भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रेषित मंत्रियों एवं अन्य की नोटशीट एवं शिकायतें एवं प्रकाशित समाचारों के आधार पर की गई कार्यवाही से स्पष्ट हो जायेगा । इन सब परिस्थितियों में जहां निगम के अध्यक्ष बेवस और लाचार नजर आ रहे हैं वहीं पूर्व प्रबंध निदेशक संजय माने स्पष्टतः घपले- घोटालों में लिप्त रहे हैं तथा वर्तमान प्रबंध निदेशक की कार्यप्रणाली भी इन सब विषयों पर समझ से परे है ।
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