पूर्व वित्त मंत्री राघव जी को हाईकोर्ट से मिली बड़ी राहत, यौन शोषण की दर्ज एफआईआर निरस्त करने के आदेश


जबलपुर मध्य प्रदेश । मध्य प्रदेश सरकार में (Ex Finance Minister Raghavji) पूर्व वित्त मंत्री राघवजी पर दर्ज कुकृत्य मामले को लेकर (MP High Court) हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है । वित्त मंत्री राघवजी के मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्रदेश की राजनीति में महत्तपूर्ण विभाग रखने वाले व्यक्ति की छवि धूमिल करने के लिए प्रतिद्वंदियों के इशारे पर FIR दर्ज करवाई गई। 
इस तरह के अपराधिक कार्यवाही में स्पष्ट रूप से दुर्भावना के वाद उपस्थित है । हाई कर्ट के जस्टिस द्विवेदी की एकलपीठ ने FIR को खारिज करने के आदेश दिए है । 

जानें क्या था पूरा मामला 

बताते चलें कि पूर्व वित्त मंत्री राघवजी पर साल 2013 में भोपाल स्थित अपने सरकारी आवास में घरेलू नौकर के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध रखने का आरोप लगा था. इस घटना की सीडी सामने आने के बाद प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया था. सीडी सामने आने के बाद राघवजी को इस्तीफा देना पड़ा था. 
राघवजी पर एक पूर्व कर्मचारी ने भोपाल  हबीबगंज थाने में उनके विरुद्ध सात जुलाई , 2013 को एफआईआर दर्ज कराई थी । 
पूर्व वित्त मंत्री राधव जी की ओर से दायर की गयी याचिका में भोपाल के हवीबगंज थाने के उनके खिलाफ धारा 377, 506 तथा 34 के तहत 7 जुलाई 2013 को दर्ज की गयी एफआईआर खारिज किये जाने की राहत चाही गयी थी। याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया था कि अनावेदक ने अपनी शिकायत में कहा है कि वह उनके ग्रह जिले विदिशा का रहने वाला है। साल 2010 में वह नौकरी के लिए भोपाल आया था और उनकी अनुशंसा पर सोम डिस्लरी में एकाउंट विभाग में नौकरी मिली है। अभियुक्त शेर सिंह चौहान के माध्यम से वह वित्त मंत्री राघवजी के सरकारी चार इमली स्थित बी-19 में रहने लगा था। शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि उसने एक अन्य पीड़ित की मदद से वित्तमंत्री का छिपकर वीडियो बनाया था ।

ये बोले मामले की पैरवी करने वाले वकील राघवजी मामले की पैरवी करने वाले वकील शशांक शेखर दुग्वेकर ने बताया कि एफआईआर से लेकर कहीं भी जबर्दस्ती जैसा मामला नहीं था । आरोप लगाने वाले ने कैमरा लगाने की बात भी कही थी । हमने अपनी दलील में इस बात का भी जिक्र किया था । यानी साफ था कि अगर जबर्दस्ती जैसी बात होती तो आरोप लगाने वाला भागने की कोशिश करता , जो कि नहीं हुआ । 6 सितंबर 2018 को एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सहमति से वयस्क समलैंगिक संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा । शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिकता ( होमोसेक्सुअलिटी ) स्वाभाविक है और लोगों का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है । 

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