भोपाल में देश का पहला ब्रेडिंग स्टूडियो यहां साधु - संतों की जटाएं संवारी जाती हैं वंदना श्रोती |



 

भोपाल संत परंपरा में पंचकेश शृंगार का विशेष महत्व भोपाल में देश का पहला ऐसा बेडिंग स्टूडियो है , जहां साधु - संतों की जटाएं संवारी जाती है । डेढ़ साल में यहां 40 से अधिक साधु संत पहुंच चुके हैं । बेडिंग आर्टिस्ट करिश्मा शर्मा कहती हैं , मैंने जटा की एक लट रखना शुरू की तो अनुभव किया कि इसका रखरखाव कितना कठिन है । इस बीच , काशी और उज्जैन के साधुओं से मिली तो देखा कि उनमें से कई की जटाएं टूटी थीं । कई ने सूई धागे से गूंथ रखी थी । उनकी परेशानी देख ब्रेडिंग आर्टिस्ट बनने का निर्णय लिया । कुछ साधुओं को उनके स्थान पर सेवा दी । अब इन्होंने दूसरे साधु - संतों को हमारे पास भेजा । वो कहती हैं कि इसके लिए कोई फीस नहीं लेतीं । वे जो दे देते हैं , उसे आशीर्वाद मानकर रख लेती हैं । साधु - संत दुर्गंध दूर रखने के लिए जटाओं में पारा रखते हैं करिश्मा कहती हैं कि उन्हें उज्जैन के एक साधु ने बताया था कि साधु - संत नदियों की रेत से ही लटों को धोते हैं । जटा - जूट रखने वाले साधु अपने केशगुच्छ में पारा रखते हैं । इससे बालों में दुर्गंध नहीं आती है । नागा साधुओं के 17 शृंगारों में पंचकेश का खासा महत्व है । इसमें लटें 5 बार घूमकर जटा का रूप ले लेती हैं ।

देश का पहला ब्रेडिंग स्टूडियो
साधु-संतों की इस परेशानी को देखते हुए भोपाल की ब्रेडिंग आर्टिस्ट करिश्मा शर्मा ने भोपाल में ब्रेडिंग स्टूडियो खोला है. करिश्मा बताती हैं कि जब मैंने जटा की एक लट रखना शुरू किया तो अनुभव किया कि इसका रखरखाव कितना कठिन है. इस बीच मैं काशी और उज्जैन में साधु-संतों से मिली तो देखा की साधुओं की जटाएं टूटी हैं. सूई धागे की मदद से साधु संतों ने अपनी जटाओं को गूथ रखा है. उनकी इस परेशानी को देखते हुए मैंने ब्रेडिंग आर्टिस्ट बनने का निर्णय लिया. 

करिश्मा शर्मा ने बताया कि शुरुआत में साधुओं को उन्हीं के स्थान पर जाकर सेवाएं दीं. बाद में मैंने भोपाल में ब्रेडिंग स्टूडियो खोलने का निर्णय लिया. करिश्मा बताती हैं कि महज डेढ़ साल के अंतराल में कई साधु-संत उनके स्टूडियो पर अपनी जटाओं को संवरवाने आ चुके हैं. 

दुर्गंध दूर कर पारे का सहारा
करिश्मा बताती हैं कि साधु-संत नदियों के पानी से ही अपनी जटाएं धोते हैं. जटाओं में दुर्गंध न आए, इसके लिए वह अपनी जटाओं के बीच पारे को रखते हैं. पारे से साधु-संतों की जटाओं में दुर्गंध नहीं आती.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ